पर्यावरण के संकट


                                पर्यावरण के संकट
आज के समय में दुनिया किस विकास का हिस्सा होने जा रहा है यह एक सोचनीय विषय है।लगातार पर्यावरण को ताक पर रखकर बनाए गई सड़कें,पनबिजली योजनाएं,इमारतें,बांध और विभिन्न प्रकार के निर्माण मनुष्य को आगे की ओर नहीं पीछे की ओर धकेल रहे हैं।इसका एक उदाहरण पिछले साल जून में हुई उत्तराखंड त्रासदी है।जिस तरह नदियों ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए तांडव मचाया वह किसी से छुपा नहीं है।हजारों परिवार बेघर हो गए,आस्था में रंगे लोगों ने अपने जान को नदियों में विसर्जित होते देखा।इन सब के पीछे सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर वह कौन से लोग हैं जो  प्रकृति से छेड़-छाड़ करने में भी बाज नहीं आते।हिमाचल प्रदेश में जिस तरह नदियों  के गर्भ को कुरेदकर सुरंगे बनाई जा रही है और जिस तरह से उनके मार्ग को परिवर्तित किया जा रहा है उसका खामियाजा वहां के आम लोग भुगतेंगें जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं है।अब वहां के लोगों ने भी इसके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी है जो एक संघर्ष का हिस्सा है।भोले-भाले लोगों से जिस तरह से भूमि अधिकृत की जाती है वह भी एक सोचनीय मुद्दा है।यह सब पनबिजली परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है जिसका लाभ इन लोगों को कभी नहीं मिलेगा।
                        हमारे देश अब शायद सब कुछ बेचने का रीति-रिवाज जोर पकड़ता जा रहा है।चाहे महान लोगों का नाम हो या उनका काम। इस का ही एक हिस्सा सरदार पटेल 182 मी उंची मूर्ति में बनेंगें जिसे बनाने में लगभग पचीस सौ करोड़ की राशि खर्च होगी।यह योजना सरदार सरोवर बांध योजना से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर है।यह योजना कितना राजनीतिक है इसकी चर्चा तो सत्ता के गलियारे में हो ही रही है वरन पर्यावरणविदों के लिए भी एक चिंता का विषय बन गया है।इस योजना के लिए कोई भी पर्यावर्णीय अनुमति नहीं ली गई है।गुजरात के मुख्यमंत्री  मोदी के लिए यह योजना वोटों की राजनीति के लिए सबसे ज्यादा अहम लग रहा है।मगर इस फेहरिस्त वह अपनी जनता को क्यों भूल जाते हैं।इस मूर्ति का नाम स्टेच्यू ऑफ यूनिटी रखा गया है।शायद यह अमेरिका के तर्ज पर रखा जा रहा हो।मगर जिस तरह से पूरा देश दंगा से पीड़ित नजर आ रहा है वहां महज मूर्ति से क्या होने वाला और इतनी ज्यादा रकम यदि देश की जनता और पर्यावरण पर खर्च किया जाता तो सच में देश मोदी को उनके कामों के लिए याद करती न कि 2002 के दंगो के लिए।

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