हम ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद...
मुझे पता है कि तुम्हारा घर पहाड़ों, नदियों और सेब के बगीचों से घिरा हुआ है। तुम्हारा यह घर कुछ-कुछ मेरे सपनों के घर से मिलता-जुलता है। तुम्हारे मिलने से बहुत पहले ही शायद मैं तुमसे मिल चुकी हूं। बहुत पहले। पता है कभी-कभी समय और स्थान बिल्कुल मायने नहीं रखता है। अगर इस धरती पर जीवन नहीं होता और यह करोड़ों साल से ऐसे ही बेजान बनी रहती तो समय और स्थान का क्या मतलब हो सकता था। इस बारे में कभी एक बेहतरीन लेख मैंने पढ़ा था लेकिन अभी कुछ भी याद नहीं है। तुम्हें जब मैंने पहली बार देखा था तो ऐसा नहीं लगा था कि मैं तुम्हें नहीं जानती हूं। लेकिन दूसरे ही क्षण एहसास हुआ कि ओह! मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम कहां के रहनेवाले हो, तुम्हारा नाम क्या है, तुम क्या करते हो, तुम्हें कौन सी चीजें पसंद हैं या खराब लगती हैं, तुम्हें कैसे लोगों से मिलना पसंद है, तुम्हें कैसा खान-पान पसंद है। मन में कई सवाल आए थे लेकिन उसे ऐसे ही जाने दिया। सोचा कि तुमसे बात करूं लेकिन बात करना भी जरूरी नहीं लगा क्योंकि हम इंसान अपनी समझ से लोगों के बारे में तत्काल अच्छा-खराब सोच लेते हैं। इसलिए बात करना जरूरी नहीं समझा।
लेकिन तुम्हें तो पता ही होगा कि इंसानी मन अजनबियों को जानने के लिए बेचैन रहता है, भले ही उसे अपने लोगों के बारे में कुछ खास पता नहीं हो। हां, तो उसके बाद हुआ यह कि मैंने तुम्हारा नाम जानने के लिए सभी तरह की कोशिशें करती और फिर सोचती कि नाम में क्या रखा है। वह यहीं आस-पास इस दुनिया में है, यही कम है क्या?
फिर धीरे-धीरे साल बीतता गया। तुम मेरे दिलो-दिमाग से जा चुके थे लेकिन एक दिन अचानक फिर तुम मुझे मिल गए। तुम बिल्कुल भी नहीं बदले थे। बिल्कुल वैसे ही थे। चेहरे पर वैसा ही शर्मीला सा भाव, तुम्हारा वह चश्मा और तुम्हारी सबसे पसंदीदा रंग की सफेद शर्ट। सालों तक तुम्हारा पीछा करते रहने के बाद मुझे यह मालूम है कि तुम्हें लड़कियों के बारे में लिखना और सफेद शर्ट पहनना पसंद है। तुम मुझे देखकर देखकर मुस्कुराए और मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। हमारी यह पहली बातचीत थी शायद। इससे पहले हम दोनों एक-दूसरे के आस-पास से अजनबियों की तरह से गुजर जाते थे। मुझे लगता था कि अकेले मैं ही तुम्हें नोटिस करती हूं तुम्हारी तो नजर भी मुझ तक नहीं जाती होगी शायद। लेकिन मैं गलत थी। इतने साल तक किसी एक चीज के बारे में गलत धारणा बनाकर रखने का ख्याल मुझे अच्छा लगा था। हम-दोनों को ही समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बात की जा सकती है, लेकिन चुप रहना भी बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि दिल के किसी एक कोने से हम अजनबी नहीं थे……..
जारी है…..
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