क्या यही मातृभाषा है देश की?
किसी को गाली देना इस देश की नहीं हर देश के लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सच है कि लोग एक-दूसरे को गाली देते हैं लेकिन ज्यादातर गालियां महिलाओं को संबोधित करके ही दी जाती है. यह भी पितृसत्ता के उस मानसिकता को ही दर्शाता है जो यह सोचकर चलता है कि औरतें पुरुषों की जागीर हैं और अगर उनकी अहम पर हमला करना हो तो उनकी मां, बहन और बेटियों को गाली दो।
यहीं कोई रात के 9 बज रहे होंगे मैं 323 नंबर की बस नोएडा से पकड़कर दिल्ली आ रही थी. बस वाला अपने आगे चल रहे एक दूसरे कार ड्राइवर को लगतार आधे घंटे से गाली दे रहा था। ऐसे तो मैं हमेशा इन बहसों से दूर ही रहना चाहती हूं। मगर बस ड्राइवर के पास खड़े रहने के कारण लगातार गाली सुनने मेरे बस की बात नहीं थी। मैंने बस वाले को गुस्से में कहा कि भाई ड्राइवर को जो कहना है कह लो। उसकी मां, बहन या बेटी गाड़ी तो चला नहीं रही कि उसे आधे घंटे से गाली दे रहे हो। और भला वह ड्राइवर भी तुम्हारी बात सुन नहीं रहा है इसलिए चुप हो जाओ। मेरी बात को सुनकर ड्राइवर कुछ पल के लिए चुप हो गया। उसके बाद उसने बड़े ही दर्शनशास्त्री की मुद्रा में कहा, 'मैडम गाली देना तो इस देश की मातृभाषा है तो फिर मैं तो अपने देश की भाषा ही बोल रहा हूं और आप मुझे विदेशी भाषा सिखा रही हैं।'
खैर मैंने उसके इस बात पर इतना जवाब दिया 'चलो अच्छा है आपको इस देश की मातृभाषा अच्छी आती है, आप इसमें पीएचडी क्यों नहीं कर लेते' . जिसके बाद ड्राइवर का कोई जवाब नहीं आया।
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