एक रिश्ते का अंत ऐसा भी....
हर सिनेमा की तरह भारतीय सिनेमा में भी तीन बातें महत्वपूर्ण हैं, लाइट, कैमरा और एक्शन लेकिन सच्चाई यह है कि यहां की फिल्मों में कैमरा और लाइट की कलाकारी कम ही की जाती है. फिल्मों में खामोशी भरे दृश्य को भी लाइट और कैमरा की मदद से सफल बनाने वाले गुरु दत्त पहले ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने दर्शकों को फिल्मों की बारीकियों से रूबरू करवाया और इसमें उनका हर वक्त साथ निभाया मशहूर निर्देशक और पटकथा लेखक अबरार अल्वी ने.
1.'प्यासा' के शुरुआती दिनों में यह फैसला लिया गया था कि फिल्म की कहानी कोठे पर आधारित होगी. लेकिन बस एक दिक्कत थी. दत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे. दत्त जब कोठे पर गए तो वहां का मंजर देखकर वो हैरान रह गए. कोठे पर नाचने वाली लड़की कम से कम सात महीनों की गर्भवती थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे. गुरु दत्त ये देखकर उठे और अपने दोस्तों से कहा 'चलो यहां से' और नोटों की एक मोटी गड्डी जिसमें कम से कम हजार रुपये रहे होंगे, उसे वहां रखकर बाहर निकल आए. इस घटना के बाद दत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, 'जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां है.'
2. गुरु दत्त को मुसलमान दर्शकों की पसंद-नापसंद का पूरा ख्याल था. उन्हें पता था कि मुसलमान दर्शकों को अगर कोई फिल्म पसंद आ जाए तो वे उसे बार-बार देखते हैं. दर्शकों के इसी पसंद का ख्याल रखते हुए दत्त ने 'चौदहवीं का चांद' फिल्म बनाई. इस फिल्म को सही मायने में मुसलमानों की सामाजिक फिल्म कहा जाता है.
3. दत्त और दत्त की खोज, वहीदा को लेकर अटकलों को बाजार हमेशा ही गरम रहा है. लोग वहीदा के बारे में सोचते थे कि दत्त उनके मोह-पाश में हैं. मगर कम लोग ही जानते हैं कि इस मोहब्बत का अंजाम क्या हुआ? बर्लिन फिल्म समारोह के लिए 'साहिब बीबी और गुलाम' आधिकारिक तौर पर नामांकित की गई थी. इस पूरे समारोह के दौरान वहीदा और दत्त में कोई बात नहीं हुई क्योंकि वहीदा को दत्त न जाने कब का अपनी नजरों से उतार चुके थे. बर्लिन में फिल्म समारोह के खत्म होने के बाद वहीदा लंदन चली गईं. लंदन जाने के पहले फिल्म निर्देशक अबरार ने वहीदा को वहां के बड़े व्यापारी गौरीसारिआ का पता दिया था ताकि विदेशी मुद्रा की आवश्यकता पड़े तो वो उनकी मदद ले सकें. दरअसल, गौरीसारिआ दत्त के भी दोस्त थे. जब दत्त को इस बात का पता चला तो उन्होंने पत्र लिखकर अबरार को कहा, 'क्या इसलिए मैंने तुम्हारा परिचय गौरीसारिआ से करवाया था कि तुम हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को उनके पास पैसे के लिए भेज दो'. अबरार ने इस वाकये से समझ लिया कि वहीदा से अपने पुराने, खूबसूरत रिश्ते को दत्त अंतिम मुखाग्नि दे चुके थे.
(राजपाल प्रकाशन से छपी किताब 'गुरु दत्त के साथ एक दशक' को सत्या सरन ने लिखा है. सत्या अंग्रेजी पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं. इस किताब को उन्होंने मशहूर निर्देशक अबरार अल्वी के साथ बातकर के इसे लिखा है. अबरार ने यहां अपने गुरु दत्त के साथ बिताए गए एक दशक के बारे में बताया है.)
1.'प्यासा' के शुरुआती दिनों में यह फैसला लिया गया था कि फिल्म की कहानी कोठे पर आधारित होगी. लेकिन बस एक दिक्कत थी. दत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे. दत्त जब कोठे पर गए तो वहां का मंजर देखकर वो हैरान रह गए. कोठे पर नाचने वाली लड़की कम से कम सात महीनों की गर्भवती थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे. गुरु दत्त ये देखकर उठे और अपने दोस्तों से कहा 'चलो यहां से' और नोटों की एक मोटी गड्डी जिसमें कम से कम हजार रुपये रहे होंगे, उसे वहां रखकर बाहर निकल आए. इस घटना के बाद दत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, 'जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां है.'
2. गुरु दत्त को मुसलमान दर्शकों की पसंद-नापसंद का पूरा ख्याल था. उन्हें पता था कि मुसलमान दर्शकों को अगर कोई फिल्म पसंद आ जाए तो वे उसे बार-बार देखते हैं. दर्शकों के इसी पसंद का ख्याल रखते हुए दत्त ने 'चौदहवीं का चांद' फिल्म बनाई. इस फिल्म को सही मायने में मुसलमानों की सामाजिक फिल्म कहा जाता है.
3. दत्त और दत्त की खोज, वहीदा को लेकर अटकलों को बाजार हमेशा ही गरम रहा है. लोग वहीदा के बारे में सोचते थे कि दत्त उनके मोह-पाश में हैं. मगर कम लोग ही जानते हैं कि इस मोहब्बत का अंजाम क्या हुआ? बर्लिन फिल्म समारोह के लिए 'साहिब बीबी और गुलाम' आधिकारिक तौर पर नामांकित की गई थी. इस पूरे समारोह के दौरान वहीदा और दत्त में कोई बात नहीं हुई क्योंकि वहीदा को दत्त न जाने कब का अपनी नजरों से उतार चुके थे. बर्लिन में फिल्म समारोह के खत्म होने के बाद वहीदा लंदन चली गईं. लंदन जाने के पहले फिल्म निर्देशक अबरार ने वहीदा को वहां के बड़े व्यापारी गौरीसारिआ का पता दिया था ताकि विदेशी मुद्रा की आवश्यकता पड़े तो वो उनकी मदद ले सकें. दरअसल, गौरीसारिआ दत्त के भी दोस्त थे. जब दत्त को इस बात का पता चला तो उन्होंने पत्र लिखकर अबरार को कहा, 'क्या इसलिए मैंने तुम्हारा परिचय गौरीसारिआ से करवाया था कि तुम हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को उनके पास पैसे के लिए भेज दो'. अबरार ने इस वाकये से समझ लिया कि वहीदा से अपने पुराने, खूबसूरत रिश्ते को दत्त अंतिम मुखाग्नि दे चुके थे.
(राजपाल प्रकाशन से छपी किताब 'गुरु दत्त के साथ एक दशक' को सत्या सरन ने लिखा है. सत्या अंग्रेजी पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं. इस किताब को उन्होंने मशहूर निर्देशक अबरार अल्वी के साथ बातकर के इसे लिखा है. अबरार ने यहां अपने गुरु दत्त के साथ बिताए गए एक दशक के बारे में बताया है.)
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