गुलाबी निब से लिखा गया अक्षर
रोमी अपने कमरे में कई घंटो से पुरानी किताबों के बीच कुछ खोज रही थी अचानक किताबों के बीच में एक कार्ड चमका, जिसे रोमी सालों से ढूंढ रही थी मगर वह नहीं मिल रहा था। कार्ड के ऊपरी हिस्से में गुलाबी निब से लिखा गया अक्षर 'रोमी' और नीचे देनेवाले का नाम 'मोहित' था।
मोहित का नाम पढ़ते समय रोमी के चेहरे पर चमक आ गई, वह चाहकर भी मुस्कान रोक नहीं पा रही थी. पहले भी कई बार वह इस कार्ड को पढ़ चुकी थी मगर उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे यह कार्ड एकदम से अभी भेजा गया हो और उसे पता नही है कि अंदर क्या लिखा गया है। रोमी ने कार्ड पढ़ना शुरू किया।
'देखो रोमी तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुम्हें संबोधित नहीं कर रहा हूं क्योंकि संबोधन से सीमा तय होती है और मैं महज एक हर्फ से कोई सीमा तय नहीं करना चाहता हूं. कई महीनों की बातचीत और मुलाकातों के बाद जो एक बात निकली है, वह यह है कि तुममें ख्वाब देखने का जज्बा है और उसे पूरा करने का भी। जब कुछ साल बाद हम जिंदगी में अपना-अपना मुकाम हासिल कर चुके होंगे, तब हम शायद इस बात पर गर्व कर सकेंगे कि हमारी दोस्ती ने हमे एक साथ सजाया और सवारा है। तुम्हारे जन्मदिन पर मैं कामना करता हूं कि तुम सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ती जाना मगर अपनी आत्मा को जिंदा रखकर। जिस दिन भी तुम्हें लगने लगे कि जिंदगी जी नहीं काट रही हूं, बगैर एक पल गवाये उस रास्ते से वापस आ जाना। जिंदगी जीने के हजार रास्ते मिलेंगे. और अंत में मैं कहना चाहता हूं कि मुझ जैसे अतिसाधारण व्यक्तित्व वाले मनुष्य को तुमसे जो स्नेह मिला उसके लिए कृतज्ञता ज्ञापन करने की जरुरत नहीं पर यह हमेशा बना रहे यह आरजू करने की गुस्ताखी तो कर ही सकता हूं। नेह बना रहेगा इसी उम्मीद के साथ
'तुम्हारा'
मोहित
कार्ड पढ़ते-पढ़ते रोमी की आंखें डबडबा आई थी खासकर के 'तुम्हारा', इस शब्द का मतलब रोमी ने तब भी यही समझा था कि मोहित उससे प्यार करता है और आज भी यही समझ रही थी। अचानक कमरे में रोमी के पति ने प्रवेश करते हुए पूछा 'अरे तुम इस किताबों के ढेर में क्या कर रही हो, पार्टी में जाना नहीं है और तुम्हारे हाथ में ये कार्ड कैसा?'.
रोमी ने मुस्कुराते हुए कहा 'यह कार्ड मेरी मुस्कान का सबसे बड़ा जरिया था, जो खो गया था फिर वापस मिल गया है अब शायद कभी ना खोए।' रोमी के पति को इस कार्ड और उसकी बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी उसके लिए पार्टी में देर होना सबसे बड़ा मसला था। उसने लगभग झिड़कते हुए कहा 'अब बस भी करो शुरू हो गई तुम्हारी बकवास, जल्दी चलो बिजनेस पार्टी है, समय पर नहीं पहुंचा तो बॉस नाराज हो जाएंगे।'
रोमी ने कार्ड को पर्स में रखा और पार्टी के लिए तैयार होने चली गई। रोमी का जाने का मन न था लेकिन फिर भी वह कार में बैठी। रोमी खिड़की से झांकने लगी, बाहर मौसम काफी अच्छा था. उसे मोहित की याद सताने लगी. सालों पहले ऐसे मौसम में वह मोहित के साथ इधर-उधर घुमा करती थी। रोमी को लगने लगा कि उसने इन सालों में शायद खुद को खो दिया है अब तो उसे यह भी पता नहीं कि उसे क्या अच्छा लगता है और क्या बुरा? 'मैं कब इतनी बदल गई पता ही नहीं चला, शादी के बाद पैसों की कमी नहीं थी इसलिए अपनी नौकरी छोड़ी और फिर लोगों से मिलना-जुलना कम कर दिया। अगर मोहित अभी मुझे देखे तो पहचानने से इनकार कर दे कि मैं ही रोमी हूं. वह तो उस रोमी का जानता है, जिसे घुमना पसंद था, सड़कों पर बेमतलब चलना पसंद था।' यादें बढ़ती गई और रोमी यादों के धुंध में खोती चली गई।
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