कहते हैं कि दुनिया रोज बदलती है मगर औरतों की दुनिया कहां बदल रही है।बाहरी रूप से जितने भी बदलाव देखने को मिले मगर अंदरूनी सच्चाई उसी गुलामी को ब्यां करती है जिस गुलामी से उबरने का दावा हम रोज कागज के कुछ टुकड़ो पर किया करते हैं।कुछ अपवाद हो सकते हैं मगर अपवाद सच्चाई को छुपा नहीं सकता।कानून में यौन उत्पीड़न,घरेलू हिंसा,मानसिक प्रताड़ना के लिए न जाने कितने नियम हैं मगर उस पर कितना अमल होता है यह सबके सामने है।जिस समाज में दहेज के लिए अभी भी बेटियों को जलाया जाए,प्यार करने की सजा मौत दिया जाए,बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उल्टे लड़कियों को दोष दिया जाए,हर बात पर चुप रहना सीखाया जाए तो उस देश, उस समाज का विकास कभी संभव नहीं हो सकता।जहां एक तरफ अपने नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता हो और दूसरी ओर यह भी नियम बनाता हो कि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी होने के बाद खुद ब खुद धर्म परिवर्तन हो जाएगा।यह कहां कि धर्मनिरपेक्षता है?
                       बाल विवाह अभी भी गांवों में बदस्तूर जारी है।छोटे-छोटे मासूम बच्चियों से उनके जीवन का सबसे सुखद काल उनका बचपन छीन लिया जा रहा है।इसके लिए गरीबी,अशिक्षा तो जिम्मेवार है ही मगर सबसे ज्यादा जिम्मेवार वह सोच है जिसमें लड़कियों को पराई वस्तु समझा जाता है।आजकल महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर एक ट्रेंड बहुत जोर-शोर से चला हुआ है “Be a man and give security  to  a woman”।अंतत:सुरक्षा कारणों से भी एक महिला पुरूष पर आश्रित ही रहे।आज समाज को जरूरत है अपनी मानसिकता सुधारने की और औरतों को वह हक देने की जिसकी वह हकदार है।तभी हमारा समाज एक आदर्श समाज और भारत में सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की पहचान साबित हो पाएगी क्योंकि अभी भी इसकी आधी आबादी उसी गुलामी से मुक्ति के लिए नित नए संघर्ष कर रही है।


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