ये दाग -दाग उजाला ये शब गज़ीदा सहर
वो इन्तजार था जिसका ,ये वो सहर तो नही
ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं।

- फैज़ अहमद फैज़ 

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