आँखों में खामोशी के चिन्ह
होठों से ख़ुशी महरूम
बचपन किसी फुटपाथ की गली में
न जाने कब खो गया था
सपनो में परियां न आती थी
झूला झूलाने
जिसे देख मन झूम जाए
सपने में आते थे
वो अंधेरे ,जिसकी सूरत
कुछ रोटी जैसी गोल -गोल  थी
दौड़ता था,गिरता था उसके पीछे
मगर जब भी उसके करीब पंहुचा तो
वह हंसकर और भी दूर उस होटल
में  जा बैठी
जहाँ जूठन पड़ा था। 

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