मेरी जिंदगी का हर दिन तुम्हारा ही तो है...........

मैंने तुम्हें कभी नहीं कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं, तुमने भी नहीं कहा कि तुम मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हो. हर वक्त थैंक्यू और सॉरी बोलने वाली मेरी जुबान ने कभी भी रात को बिस्तर पर पानी का ग्लास पकड़ते वक्त तुम्हें थैंक्यू, शुक्रिया या धन्यवाद नहीं कहा. मेरी महीनों लंबी बीमारी में तुमने वही दर्द और पीड़ा महसूस किया, जिसे मैं झेल रही थी. मेरे चेहरे का उदास होना काफी था तुम्हारे चेहरे की रंगत उड़ा देने के लिए, मेरी आंखों में आया पानी का हर कतरा तुम्हारी आंखों से होकर गुजरता है. प्यार और प्रेम की पहली परिभाषा हो तुम मेरे लिए, ऐसी परिभाषा जिसे दुनिया का हर इंसान बिना किसी शक के स्वीकार कर सकता है.

मुझे याद है एक बार ट्यूशन से आने में मुझे काफी देर हो गई थी. रात के सन्नाटे में दरवाजे पर तुम खड़ी थी. तुम्हारी आंखों की बेचैनी तुम्हारे डर को बयां कर रहे थे. मैं अंदर से डर गई थी कि आज तो जबर्दस्त डांट पड़ने वाली है. मगर तुमने मुझे डांटा नहीं. तुमने कभी मुझे यह नहीं बताया कि मेरे भाई और मेरे बीच क्या फर्क है? तुमने जितनी आजादी अपने बेटे को दी उससे ज्यादा मुझे दिया है, तुमने हम दोनों भाई-बहनों की पढ़ाई पर समान रूप से ध्यान दिया है. तुम्हें देखकर ही मैंने पहली बार जाना कि इंसान का ज्यादा पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं होता बल्कि इंसान होना जरूरी होता है.
लेकिन शायद मैं एक अच्छी बेटी नहीं हो पाउंगी क्योंकि मैं तुम्हारी तरह निस्वार्थ जीवन नहीं जी रही हूं. तुम्हारा हाथ हर वक्त मेरी हर तकलीफ में मेरे सिर पर होता था और मैं बस फोन करके पूछ लेती हूं कैसी हो? तुम्हारा वही जवाब जो आज तक नहीं बदला 'मुझे क्या हुआ मैं तो ठीक हूं, अपना बताओ तुम कैसी हो, खाना खा रही हो ना, इस बार आना तो मोटी होकर आना वरना मैं जाने नहीं दूंगी. पढ़ाई-लिखाई कर रही हो ना? पता है ना इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता.'

जैसा कि मुझे और मेरी तरह की हर बेटी और बेटे को पता है कि शहर अकेलापन देता है, हम डरते हैं अकेले में एक पल भी घर-परिवार के बारे में सोचने से, इसलिए भी शायद रात में सोते समय भी कानों में इयरफोन डाले होते हैं, कैंडी क्रश खेल रहे होते हैं या ऐसे लोगों से भी मिलने चले जाते हैं जिनसे मिलने का कभी दिल नहीं करता. मगर इन तमाम बातों के बीच हम डरते हैं कि रुपये नहीं कमाएंगे तो तरक्की कैसे करेंगे? कल अपना घर कैसे चलाएंगे? इन्हीं सवालों को सोचकर के हर बार तुम्हें यूं ही अकेले रोते हुए छोड़ कर चली आती हूं . और हां, आते वक्त हम दोनों कभी एक-दूसरे को नहीं देखते हैं क्योंकि हम दोनों में ही इतनी हिम्मत नहीं है कि एक-दूसरे को रोते हुए देखें. बस जानते हैं कि तुम भी रो रही हो और मैं भी.

मैं इस बात में विश्वास तो नहीं करती कि तुम्हें मदर्स डे के दिन यह कहूं कि मां मैं तुमसे प्यार करती हूं, मुझे तो अच्छा लगेगा कि यह सिलसिला चले कि ना तुम मुझसे कहो कि तुम सबसे ज्यादा मुझसे प्यार करती हो और न ही मैं कहूं कि सबसे ज्यादा मैं तुमसे प्यार करती हूं. मैं तो तुम्हें शुक्रिया भी नहीं कह सकती क्योंकि यह शब्द तुम्हारे कामों के लिए बहुत छोटा है, शब्दों में इतनी ताकत नहीं कि तुम्हारे कामों के लिए काफी हो. तो बस यही कहूंगी कि जितना मिला वह ऐसे ही मिलता रहे और कोशिश यही रहेगी कि तमाम व्यस्तताओं के बाद भी तुम्हारी हर परेशानी को दूर कर सकूं क्योंकि सिर्फ एक दिन नहीं मेरी जिंदगी का हर दिन तुम्हारा ही तो है.

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