‘तेरा पलट कर फिर न देखना, नहीं माफ करूंगा मैं, जब तक है जान’


बस कुछ कदम की दूरी थी. मेरे और उसके दरमियां. मुझे पता था कि वह मुड़कर नहीं देखेगा. मैं दौड़कर उसके कंधे पर झूल जाना चाहती थी लेकिन जहां दौड़ने की बारी थी, वहां मुझसे हिला तक नहीं गया. बस मैं टकटकी लगाए उसे आंखों से दूर होती देखती रही. मैं अपने सारे करीबी लोगों को जाते हुए बहुत गौर से देखती हूं कि शायद वह मुझे पलट कर देखेंगे. लेकिन ऐसा कम ही हो पाया है. लगभग के बराबर
जब तक है जानयह फिल्म जब आई थी तो उसकी यह पंक्ति मेरे दिमाग में अटक गई थीतेरा पलट कर फिर देखना, नहीं माफ करूंगा मैं, जब तक है जान.’  मैं हमेशा सोचती हूं जो लोग मुझे बहुत प्यार करते होंगे वह पलट के देखेंगे। और अब तक यह के बराबर हुआ है. लेकिन फिर मैं अपने बारे में सोचने लगती हूं कि मैंने कब मुड़के देखा है. शायद के बराबर. यानी हिसाब बराबर का है। क्या इसका मतलब है कि मैं उन सारे लोगों को प्यार नहीं करती, जिनके बिना मैं होकर भी कुछ नहीं रह जाऊंगी. बचपन में मैं अपने पापा से बहुत अधिक डरती थी, मुझे लगता था कि वह जितनी देर घर से बाहर हैं, उतना ही अच्छा है। शायद मेरे पापा भी इस बात को तब बखूबी समझते थे और अक्सर वह जाते हुए पूछते थे , ‘ जइयो कि नै जइयो (जाऊं या जाऊं) और मैं बिना देरी किए हुए कहती थी (जाहो- जाइए). जब बड़ी हुई और पापा धीरे-धीरे गार्जियन कम दोस्त ज्यादा बनने लगे तो भी बचपन की वह आदत नहीं गई. आज भी जब कभी मैं घर पर होती हूं और वह, यह सवाल करते हैं तो मेरे मुंह से अनायास ही वही जवाब आता है.  

पापा ने मुझे एक बार सलाह दी थी कि जिन्हें रोकना चाहती हो, उन्हें बोलो रुकने के लिए। अपनी भावनाओं से भागना नहीं चाहिए. मैंने इस सलाह को थोड़ी गंभीरता से लिया अब मुझे जिनका साथ अच्छा लगता था, उन्हें रुकने को कहने लगी. लेकिन मुझे एहसास होने लगा है कि भावनाओं से भागना आसान था. रुकने को कहना यहां एक कमजोरी की तरह लिया जाता है. अगर आप किसी को रुकने के लिए कहते हैं तो वह सोचेगा या सोचेगीइसे पता नहीं है कि मेरे पास समय नहीं है, मेरे खुद के कितने काम बचे हुए हैं, मजबूत बनो, डरो मत, सब दुनिया में अकेले हैं, लगता है आना ही बंद करना पड़ेगा’.  और उनकी बातें एक हद तक सही भी होती है। हम ऐसे ही माहौल में बड़े होते हैं जहां पलटकर देखने और दौड़कर गले लगाने की अपेक्षाजानाज्यादा आसान होता है।  शायद यही वजह है कि हम अपनी भावनाओं से भागते रहते हैं, सच नहीं कहना चाहते हैं क्योंकि कुछ भी हो जाए हम कमजोर या याचक नहीं दिखना चाहते हैं.  हमें हर हाल में मजबूत बने हुए होना होता है और इसी तरह से हम कमजोर होने से एक बार फिर बच जाचे हैं। 

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