'पत्रकारिता में अनुभव के आधार पर बने IIMC का नया डायरेक्टर'

देश के कई बड़े सरकारी इंस्टीट्यूट में हाल में हुई बड़ी भर्तियां विवाद का हिस्सा बनी हैं. आने वाले समय में IIMC के डायरेक्टर का चुनाव भी होना है. मीडिया के बदलते माहौल और नई तकनीकों के कारण स्टूडेंट्स की मांग है कि कोई ऐसा डायरेक्टर आए जो स्टूडेंट्स और पत्रकारिता की मौजूदा मांगों को पूरा कर सके. इसी सिलसिले में हमने पत्रकारिता के फील्ड में लंबा अनुभव रखने वाले पत्रकार और लेखक राम बहादुर राय से बात की.

1. IIMC में आप कैसा डायरेक्टर चाहते हैं?
एक स्वायत्त संस्था की तौर पर यह यह संस्थान काम कर रहा है. सरकार में एक नजरिया बना हुआ है कि सरकार इसे जैसे चलाना चाहे, वैसा चलाए और इसमें नरेंद्र मोदी की सरकार अपवाद नहीं है. यह शुरू से ही चला आ रहा है. 1990-91 में प्रसार भारती बना लेकिन आज तक यह स्वायत्त संस्थान की तरह काम नहीं कर पा रहा है. मैं तो कहूंगा कि एक तरह प्रसार भारती का जन्म ही नहीं हुआ. प्रसार भारती को सरकारी अफसर चलाते हैं. IIMC में कोई भी डायरेक्टर जनरल (DG) आए, उससे स्टूडेंट्स की भलाई होनी चाहिए. उसकी मौजूदगी महज खानापूर्ति ना हो.

2. सरकार पर जिस तरह यह आरोप लग रहा है कि वह अपने लोगों की भर्तियां इंस्टीट्यूट में कर रही है. FTII के स्टूडेंट्स अभी भी चेयरमैन को हटाने के लिए हड़ताल पर हैं. क्या सरकार डीजी भर्ती में भी राजनीति करेगी?
देखिए, FTII के उदाहरण से सरकार कुछ तो सीखेगी. चयन कमेटी के दो लोगों, स्वपन दास गुप्ता और रजत शर्मा से मुझे बड़ी उम्मीद है. रजत एक मीडिया इंस्टीट्यूट चला रहे हैं और स्वपन दास गुप्ता एक अच्छे पत्रकार रह चुके हैं. अपनी मेहनत की बदौलत इंस्टीट्यूट खड़ा करने वाले लोगों में रजत भी शामिल हैं. इस वजह से मुझे लगता है कि ये लोग निश्चित ही बेहतर निर्णय करेंगे. कुल 36 नाम गए हैं, उनमें से 12 शॉर्टलिस्ट हुए हैं. चयन में पत्रकारिता के अनुभव को मुख्य आधार बनाया जाएगा.

3. IIMC में पढ़ाई करने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स चाहते हैं कि उनका कैंपस प्लेसमेंट हो जाए? क्या आने वाले डीजी स्टूडेंट्स की इस मांग को पूरा कर पाएंगे?
भारत सरकार के अधीन जितने भी मीडिया हाउस हैं, उनमें यहां के स्टूडेंट्स को वरीयता मिलनी चाहिए क्योंकि सरकारी मीडिया हाउसेज में अच्छे काम करने वाले लोगों की सख्त जरूरत है. इसलिए यह नियम बने कि IIMC के स्टूडेंट्स को सरकारी मीडिया हाउसेज में नौकरी मिले. ऐसा करने से मार्केट में उतने ही पत्रकार पैदा होंगे, जितने होने चाहिए और ऐसे इंस्टीट्यूट भी बंद होंगे जो पत्रकारिता सिखाने के नाम पर बस ऐसे ही बैठे हैं. कोई इसलिए तो पत्रकारिता के इंस्टीट्यूट में जा नहीं रहा है कि उसे नागरिक पत्रकारिता यानी सिटीजन जर्नलिज्म करना है. आज कल पत्रकारिता के स्टूडेंट्स के रोल मॉडल टीवी एंकर हैं. प्लेसमेंट की जरूरत तो है ही स्टूडेंट्स को, और इसे पूरा भी किया जाना चाहिए. प्रसार भारती का अपना एक रिक्रूटमेंट बोर्ड होना चाहिए क्योंकि यहां ज्यादातर लोग डिपुटेशन पर हैं. अगर रिक्रूटमेंट बोर्ड बनेगा तो सारे लोग अपने डिपार्टमेंट में वापस जाएंगे और पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को मौका मिलेगा.

4. IIMC निकट भविष्य में यूनिवर्सिटी बनने जा रही है. क्या आपको लगता है कि यह एक अच्छी यूनिवर्सिटी के रूप में उभर पाएगी ?
सबसे पहले तो यूनिवर्सिटी बनने की घोषणा हुई है. इसको लेकर आगे क्या होता है, उसे तब देखा जाएगा. कुल मिलाकर पत्रकारिता की पढ़ाई का जो स्तर बना है, उसमें भारी गिरावट आई है. यह इंस्टीट्यूट एक उदाहरण बन सकता था कि इस तरह पढ़ाई होनी चाहिए. अगर अरुण जेटली यूनिवर्सिटी की बात कर रहे हैं तो संभव है कि उनके दिमाग में यहां शैक्षणिक सुधार चल रहा हो. वह धीरे-धीरे इसे लागू करेंगे. लेकिन अभी मुझे नहीं लगता कि IIMC सरकारी संस्थान की बजाय पत्रकारिता का स्वायत्त संस्थान बन सकेगा. संस्थाएं एक अवधारणा से बनती है.  इंस्टीट्यूशन का बनना एक प्रक्रिया होती है, उस प्रक्रिया से हम लोग कई कारणों से हट गए हैं. इसलिए केंद्र से जुड़े हुए विश्वविद्यालय हों, राज्यों से जुड़े आयोग हों. वह उन लोगों के अड्डे बन गए हैं, जिन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं. यहां के स्टूडेंट्स से फिर भी उम्मीद रहती है क्योंकि यहां दाखिला लेने के लिए लिखित परीक्षा होती है.

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