नसीर: कम संवाद वाली यह फिल्म हमें आइना दिखाकर स्तब्ध कर देती है...

अजान हो चुका है, सुबह के छह बज रहे हैं, ताज अपने किचन में खाना बना रही है, इकबाल को उठाया जा रहा है… घड़ी की टिक-टिक जारी है.  कुछ इस तरह से ‘नसीर’ का पहला दृश्य शुरू होता है। एक आम जिंदगी में पैसे की तंगी और उधारी। हजारों घरों की तरह घर, दीवारों का चूना झरता हुआ और दरारें निकली हुईं। नसीर अपनी पत्नी को बस स्टैंड पर छोड़ने के लिए जाता हुआ और चलते कदमों की आवाज के साथ-साथ पीछे से मस्जिद की लाउडस्पीकर की आवाज। पति-पत्नी संकरी गलियों से आगे बढ़ते हैं. लाउडस्पीकर से आवाज आती है, ‘’ छोटी-छोटी बातों पर विवाद हो रहा है, टोपी पहने या न पहने इस पर भी।’’ संकरी गलियों से निकल कर पति-पत्नी मुख्य सड़क पर आते हैं. बाजार में गणेश भगवान की मूर्तियां रखी हुई हैं, पीछे से लाउडस्पीकर  से आवाज आ रही है कि भारत और तमिलनाडु प्राचीन समय में कैसा था? बातें हो रही हैं कि राक्षसी ताकतें आगे बढ़ रही हैं लेकिन धर्म इसे खत्म करने में मदद करेगा। बात देश को किस-किस से खतरा है पर आती है? किसी का नाम नहीं लिया जाता लेकिन इशारा स्पष्ट है।



कुछ इस तरह से तमिल फिल्म 'नसीर' की शुरुआत होती है. यह फिल्म ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 'वी आर वन' में दिखाई है और इसे जियो मामी ने क्यूरेट किया है।  
नसीर और ताज पर इन बातों का कोई असर नहीं दिख रहा है. वह इस सबसे बेखबर फूलों के बाजार से होते हुए बस स्टैंड पहुंचते हैं। नसीर पूछता है, सच में जाना जरूरी है क्या? वह कुछ नहीं कहती, सामने खड़ी बस में बैठ जाती है। खिड़की से नसीर झोला दे देता है और कहता है अच्छे से रहना, ताज जवाब देती है- इंशाअल्लाह जल्द ही आ जाऊंगी। 

नसीर कपड़े के दुकान में काम करता है, सुबह दुकान खोलता है, भगवानों को साफ करता है, माला पहनाता है, दुकान में ईश्वर, अल्लाह और ईसा मसीह तीनों एक फ्रेम में हैं। फ्रेम में ही हैं बस। नसीर कपड़ों की दुकान वाले मॉडल को कपड़े पहनाता है, बाहर खड़ी करता है, लड़की की नाक खींचता है और फिर रोज का वही काम शुरू कर देता है। औरतों को साड़ी दिखाता है, बड़ी सादगी से बात करता है। 

रेडियो पर बेगम अख्तर की आवाज में 'किससे पूछें, हमने कहां चेहरा-ए-रोशन देखा है, महफिल-महफिल ढूंढ़ चुके हैं, गुलशन-गुलशन देखा है...' सुनता है।

वह मालिक द्वारा मुसलमानों को सबक सिखाने वाली बात सुनकर भी अनसुना करता है. वह काम में मगन है. ग्राहक न रहने पर दुकान में मजाकिया बाते होती हैं, लोग चिढ़ाते हैं नसीर को कि उसकी बीवी चली गई, वह अकेले कैसे रहेगा। 

नसीर अपने बेगम को चिट्ठी लिखता है, चिट्ठी में वह खुद को बेगम के प्यार का कैदी बताता है. वह बताता है कि आज जब वह जा रही थी तो उसके दिल में अजीब सी धुक-धुकी हुई, और जब वह बस स्टैंड से आ रहा था तो एक बांसुरी वाला वही गीत गा रहा था जो उसने निकाह में उसे सुनाया था। 

नसीर को आस-पास के माहौल के बारे में पता है, वह सब कुछ सुन रहा है मगर एक बेख्याली सी है। उसके ख्याल में उसकी मां है जो कैंसर की मरीज है, वह उसके इलाज के लिए परेशान सा है. एक गोद लिया बच्चा इकबाल है जो मानसिक रूप से विक्षिप्त है और पेंटिंग करके मछलियां बनाता है, उसके ख्यालों में उसकी पत्नी है जिसके पास नहीं रहने पर भी वह उससे बात कर रहा है. वह स्कूटर चलाते हुए भी अपनी बीवी से बातें कर रहा है। अपनी बीवी से कह रहा है- तुम अच्छे से पहुंच गई होगी, इकबाल ने खाना खा लिया, तुम्हारे बिना घर उजाड़ लगता है, तुम तीन दिन के लिए ही गई हो लेकिन अच्छा नहीं लगता है। 
वेतन को लेकर परेशान है, बीवी से कह रहा है कि वह लौटेगी तो घर का सामान खरीदेगा।

अंधेरा होने लगा है,  वह स्कूटर से दुकान की ओर लौट रहा है, मूर्ति विसर्जन के लिए लोग जा रहे हैं, नारे लग रहे हैं , “हिमालय से कन्याकुमारी तक एक देश-एक धर्म, भारत माता की जय।’’ 

नसीर दुकान का काम खत्म करता है, पता चलता है कि दंगे शुरू हो गए हैं। नसीर संकरी गलियों से चल रहा है, दिन भर उसने क्या-क्या इसके बारे में ख्यालों में बीवी को बता रहा है, जिंदगी को कैसे बेहतर बनाया जाएगा, इसके बारे में सोच रहा है, भीड़ आती है-कहती है वो देखो मुस्लिम...

और उसके बाद जो होता है उसकी तस्वीरें हम हाल में दिल्ली दंगों में देख चुके हैं। भीड़ से आवाज आती रहती है- भारत माता की जय

रात में सोता है नसीर और बेगम अख्तर की आवाज आती है- किससे पूछें, हमने कहां चेहरा-ए-रोशन देखा है, महफिल-महफिल ढूंढ़ चुके हैं, गुलशन-गुलशन देखा है…

क्या हम इस बारे में सोच सकते हैं कि एक आदमी मार दिया जाता है, मतलब सिर्फ एक आदमी। आदमी का मरना क्या होता है, मतलब हम उसके मरने के बाद भी उसे याद क्यों करते हैं? उसकी बातों के लिए, उसकी हंसी के लिए, उसके साथ के लिए। यह सब भी तो मरता है तो फिर एक आदमी के साथ कितनी चीजें मरती हैं। मरने वाले के दिलो-दिमाग में कितने ख्याल थे, कितनी बातें थीं। इसके अलावा कितने और दिलो-दिमाग होंगे जो उस समय उसकी बातें कर रहे होंगे, उसको अपने ख्यालों में रखे होंगे। 

पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है जब भी ‘भारत माता की जय’ को अंग्रेजी सबटाइटल में पढ़ती हूं तो और भी कोफ्त होती है, जो चीज याद आ जाती है उसे याद नहीं करना चाहती। Heil शब्द का मतलब ही Heil Hitler के बाद समझ आया था और जब भी भीड़ को चीखते हुए और सबटाइट्ल में Heil Mother India पढ़ती हूं, रूह कांप सी जाती है। 

नसीर के निर्देशक अरुण कार्तिक हैं। यह उनकी दूसरी फिल्म है। इसकी कहानी  दिलीप कुमार की कहानी ‘ए क्लर्क्स स्टोरी’ पर आधारित है। नसीर का किरदार Koumarane Valavane ने निभाया है, उन्होंने भीड़ में नहीं दिखने वाले इंसान की बारीकिओं को बहुत अच्छी तरह से पकड़ा है और ताज के कुछ मिनटों के किरदार में सुधा रंगनाथन भी अच्छी लगी हैं। 

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