ए जिंदगी मैं तेरी बारिश की हर बूंद में जीना चाहती हूं, जी भर के भींगना चाहती हूं,नाचना चाहती हूं,गिरना चाहती हूंं और न जाने क्या-क्या करना चाहती हुं? मगर तेरी ये कड़कती बिजलियाँ रोकती है मुझे,मुझमें डर पैदा करती है,कहती है कि तू घर में कैद रह वहाँ तेरे लिए सारी सुविधाएं मौजूद है,वहां तुझे बिल्कुल भी तकलीफ नहीं होगी। तेरी जिंदगी इससे बाहर नहीं है ,यह एक घर से शुरू होकर दूसरे किसी बंद आंगन में खत्म होगी। वह घर भी तेरा नहीं होगा वहाँ तू महज एक सामान की तरह रहेगी। जब तक खामोश किसी कोने में पड़ी रहेगी तब तक तो रहेगी मगर जैसे ही तेरे लब ने आवाज निकाली कि तू बाहर फेंक दी जाएगी।
सावन की एक सुबह और नैनीताल की सैर
काठगोदाम से आंखों को मलते हुए हम दोनों बाहर आ गए, अभी दूर-दूर तक अंधेरा ही दिख रहा था. पिछली बार जब अकेले आई थी तो अंधेरा ख़त्म होने का इंतज़ार किया था, तब बारिश भी बहुत तेज़ हो रही थी. काठगोदाम प्यारा स्टेशन है, जहां से लगता है कि आप पहाड़ में आ गए और अब आगे की यात्रा बेहद सुखद होने वाली है. सुखद की अपनी व्याख्याएं हैं. सड़क पार करते ही पहली जो बस आई, उसके कंडक्टर से पूछा कि बस नैनीताल जाएगी, उसके हां कहते ही चढ़ गई. बस में सीट तो है नहीं, मेरे इतना बोलने से पहले बस रवाना हो चुकी थी. फिर किसी तरह हम दोनों ने एडजस्ट किया. बस में चढ़ते ही सब कुछ जैसे धीमा हो गया था, लोंगों के बात करने की रफ़्तार, जगहों के बदलने की रफ़्तार. कुछ धीमा हुआ भी था या ये मेरा वहम था. इतने मशीन हो चुके हैं कि असल अब वहम जैसा है. ये बातें कितनी बार कही गई हैं कि जीवन एक सेट अप के बाहर धीमा है, आप महसूस करते हैं कि आपने एक दिन बिताया, ज़िंदगी लंबी लगती है, आप जहां सुख और दुख दोनों अहसास लेकर चलते हैं. लेकिन अब सब एक दिन की तरह है. पिछला 10 साल कितनी तेज़ी से निकल गया. लेकिन सब अपना ही...
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