ए जिंदगी मैं तेरी बारिश की हर बूंद में जीना चाहती हूं,  जी भर के भींगना चाहती हूं,नाचना चाहती हूं,गिरना चाहती हूंं और न जाने क्या-क्या करना चाहती हुं?  मगर तेरी ये कड़कती बिजलियाँ रोकती है मुझे,मुझमें डर पैदा करती है,कहती है कि तू घर में कैद रह वहाँ तेरे लिए सारी सुविधाएं मौजूद है,वहां तुझे बिल्कुल भी तकलीफ नहीं होगी। तेरी जिंदगी इससे बाहर नहीं है ,यह एक घर से शुरू होकर दूसरे किसी बंद आंगन में खत्म होगी। वह घर भी तेरा नहीं होगा वहाँ तू महज एक सामान की तरह रहेगी। जब तक खामोश किसी कोने में पड़ी रहेगी तब तक तो रहेगी मगर जैसे ही तेरे लब ने आवाज निकाली कि तू बाहर फेंक दी जाएगी।

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