हम ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद...
मुझे पता है कि तुम्हारा घर पहाड़ों , नदियों और सेब के बगीचों से घिरा हुआ है। तुम्हारा यह घर कुछ - कुछ मेरे सपनों के घर से मिलता - जुलता है। तुम्हारे मिलने से बहुत पहले ही शायद मैं तुमसे मिल चुकी हूं। बहुत पहले। पता है कभी - कभी समय और स्थान बिल्कुल मायने नहीं रखता है। अगर इस धरती पर जीवन नहीं होता और यह करोड़ों साल से ऐसे ही बेजान बनी रहती तो समय और स्थान का क्या मतलब हो सकता था। इस बारे में कभी एक बेहतरीन लेख मैंने पढ़ा था लेकिन अभी कुछ भी याद नहीं है। तुम्हें जब मैंने पहली बार देखा था तो ऐसा नहीं लगा था कि मैं तुम्हें नहीं जानती हूं। लेकिन दूसरे ही क्षण एहसास हुआ कि ओह ! मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम कहां के रहनेवाले हो , तुम्हारा नाम क्या है , तुम क्या करते हो , तुम्हें कौन सी चीजें पसंद हैं या खराब लगती हैं , तुम्हें कैसे लोगों से मिलना पसंद है , तुम्हें कैसा खान - पान पसंद है। मन में कई सवाल आए थे लेकिन उसे ऐसे ह