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हम ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद...

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मुझे पता है कि तुम्हारा घर पहाड़ों , नदियों और सेब के बगीचों से घिरा हुआ है। तुम्हारा यह घर कुछ - कुछ मेरे सपनों के घर   से मिलता - जुलता है। तुम्हारे मिलने से बहुत पहले ही शायद मैं तुमसे मिल चुकी हूं। बहुत पहले। पता है कभी - कभी समय और स्थान बिल्कुल मायने नहीं रखता है। अगर इस धरती पर जीवन नहीं होता और यह करोड़ों साल से ऐसे ही बेजान बनी रहती तो समय और स्थान का क्या मतलब हो सकता था। इस बारे में कभी एक बेहतरीन लेख मैंने पढ़ा था लेकिन अभी कुछ भी याद नहीं है। तुम्हें जब मैंने पहली बार देखा था तो ऐसा नहीं लगा था कि मैं तुम्हें नहीं जानती हूं। लेकिन दूसरे ही क्षण एहसास हुआ कि ओह ! मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम कहां के रहनेवाले हो , तुम्हारा नाम क्या है , तुम क्या करते हो , तुम्हें कौन सी चीजें पसंद हैं या खराब लगती हैं , तुम्हें कैसे लोगों से मिलना पसंद है , तुम्हें कैसा खान - पान पसंद है। मन में कई सवाल आए थे लेकिन उसे ऐसे ह

मासिक धर्म और शारीरिक अक्षमता का गणित!

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IMAGE:KFAYAZ AHMAD केरल में हाल ही में एक मीडिया संगठन ने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को एक दिन की छुट्टी देने की घोषणा की है। जब मैं यह खबर टाइप कर रही थी तो एक बार को मेरे मन में आया कि सारे संस्थानों को एक बार इस विषय पर जरूर गौर फरमाना चाहिए और इस दौरान कम से कम एक दिन की छुट्टी तो जरूर देनी चाहिए। मेरे मन में तब बिल्कुल भी यह ख्याल नहीं आया था कि इस छुट्टी को लोग महिला बनाम पुरुष बना देंगे लेकिन मैं गलत थी, लोगों ने इसे न सिर्फ महिला बनाम पुरुष बनाया बल्कि औरत की शारीरिक क्षमता पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। छुट्टी न देने के पीछे ऐसे लोगों का तर्क है कि इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि औरत शारिरिक रूप से कमजोर होती है। यह तर्क देने वाले यहीं नहीं रूके उन्होंने चलते-चलते यह भी कह दिया कि इस छुट्टी का गलत फायदा भी उठाया जा सकता है। पहली बात तो यह है कि मासिक धर्म का औरत की शारीरिक क्षमता से क्या लेना-देना हो सकता है, इसके बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है और जिनको वाकई में समझना होगा, वह पढ़ लेंगे। हां, और अगर आपको अभी भी लगता है कि औरत नियमित रूप से अपनी शारीरिक क्षमता

मौत तू एक कविता है....

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 मामा (हम लोग दादी को मामा बोलते थे) की मौत से करीब एक महीने पहले उनका गोदान करा दिया गया था। इसके बाद से  मामा ने लगभग बात करना बंद कर दिया था ,  लेकिन खांसी और दमा को अभी भी उनसे बेहद लगाव था। एक दिन सुबह-सुबह मैंने पापा और मम्मी को काफी परेशान सा देखा। वह चाचा को बता रहे थे  “ माय आब नै बचतै :मां अब नहीं बचेगी:” क्योंकि मामा ने सुबह में पापा को बताया था कि रात में यमराज अपने साथ भैंसा और मोटी रस्सी लेकर आया था। मैं घर का पर्दा पकड़े-पकड़े यह बात सुन रही थी और काफी डर गई थी। मामा पर एक गहरी नजर डालते हुए मैं दौड़कर  खेलने के लिए बाहर चली गई।      इसके बाद तो मैंने मामा के आस-पास फटकना भी बंद कर दिया था। हर वक्त मुझे सिर्फ मोटी  रस्सी लेकर यमराज ही आता दिखता था। इसका प्रभाव मेरे मन पर इतना ज्यादा था कि मैं मामा  के जल्द से जल्द मरने की दुआएं मांगने लगी थी। मैं रोज मंदिर जाती और आंख बंद करके  भगवान से कहती ‘मामा के मराय दहो न भगवान ,  रोजे जम चैल आवै छै घोर में।”    मामा हमेशा बेचैन रहने लगी थी और अब उन्हें कुछ याद भी नहीं रहता था। वह कई बार दूध पीने  के बाद