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मेरी जिंदगी का हर दिन तुम्हारा ही तो है...........

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मैंने तुम्हें कभी नहीं कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं, तुमने भी नहीं कहा कि तुम मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हो. हर वक्त थैंक्यू और सॉरी बोलने वाली मेरी जुबान ने कभी भी रात को बिस्तर पर पानी का ग्लास पकड़ते वक्त तुम्हें थैंक्यू, शुक्रिया या धन्यवाद नहीं कहा. मेरी महीनों लंबी बीमारी में तुमने वही दर्द और पीड़ा महसूस किया, जिसे मैं झेल रही थी. मेरे चेहरे का उदास होना काफी था तुम्हारे चेहरे की रंगत उड़ा देने के लिए, मेरी आंखों में आया पानी का हर कतरा तुम्हारी आंखों से होकर गुजरता है. प्यार और प्रेम की पहली परिभाषा हो तुम मेरे लिए, ऐसी परिभाषा जिसे दुनिया का हर इंसान बिना किसी शक के  स्वीकार कर सकता है. मुझे याद है एक बार ट्यूशन से आने में मुझे काफी देर हो गई थी. रात के सन्नाटे में दरवाजे पर तुम खड़ी थी. तुम्हारी आंखों की बेचैनी तुम्हारे डर को बयां कर रहे थे. मैं अंदर से डर गई थी कि आज तो जबर्दस्त डांट पड़ने वाली है. मगर तुमने मुझे डांटा नहीं. तुमने कभी मुझे यह नहीं बताया कि मेरे भाई और मेरे बीच क्या फर्क है? तुमने जितनी आजादी अपने बेटे को दी उससे ज्यादा मुझे दिया है, तुमने हम दोनों भा

ये पर्वतों के दायरे.........

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सुबह का उजाला हो, नदी का किनारा हो और दूर तक पहाड़ की बाहें हो, जिसमें दुनिया को क्या, मैं खुद को भी भूल जाऊं। पानी का ऐसा शोर जिससे मन के अंदर की हलचल खत्म हो जाए और दिल शांति से भर जाए. ऋषिकेष की यात्रा के दौरान पानी और पहाड़ ने मुझे यह एहसास दिला दिया कि मनुष्य सिर्फ प्रकृति के पास ही खुश रह सकता है. गंगा का वो बालू जिस पर सुबह में पैर रखने से ऐसा एहसास होता है कि यहां से बाहर जिंदगी है ही नहीं। इस यात्रा की शुरुआत ही बहुत अच्छी हुई थी क्योंकि बस ड्राइवर के पास पुराने गानों का अच्छा संग्रह था. उसने मुझे खुबसूरत यादों में बांधे रखा. यादें कितनी अजीब होती हैं, आपकी तन्हाई का सबसे बड़ा सहारा। इन्हीं यादों के बीच से गुजरते हुए गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर आया । मुजफ्फरनगर नाम ही काफी था दिल में डर, चीख, रोने की आवाज भर देने के लिए। मगर रात शांत थी और अमूमन जैसा होता है रात की काली चादर ने जख्मों को ढक रखा था, आगे सुबह का उजाला था और मैं ऋषिकेष पहुंच चुकी थी. जगह काफी शांत था जैसा कि मैं चाहती थी. नदी का तट खाली था, कोई आसपास नहीं. मेरी बचपन की आदत है नदी और खेतों से बातें क