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‘यह सब नींद में चलने वाले लोग हैं, अपनी गलतियां नहीं देख पाते हैं’

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लोग गरीबी, अभाव, भुखमरी और दरिद्रता की बात करते हैं लेकिन काव्यात्मक प्रतीत होने वाले इन शब्दों में से कोई भी शब्द हमारी उस स्थिति को बयां नहीं करता है जिससे हम तब गुजरे थे। दुनिया की कोई भी भाषा हमारी उस स्थिति का बयान नहीं दर्ज कर सकती। उन दिनों हर क्षण बर्दाश्त के बाहर होने वाली पीड़ा को भला दुनिया की किस भाषा के किन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है? मनोरंजन व्यापारी की किताब ‘ इंट्रोगेटिंग माय चंडाल लाइफ’ को पढ़ते समय मैंने कई बार सोचा कि मैं भूख के बारे में क्या जानती हूं, शायद कुछ नहीं। पहली बार ऐसा था कि मैं एक ऐसी किताब पढ़ रही थी जिसे सड़क पर चाय बनाने वाले किसी बच्चे, पटरी पर फेंकी गई रोटी को लेने के लिए कुत्ते के साथ दौड़ जाने वाले बच्चे, पुलिस के हाथों शारीरिक उत्पीड़न झेलने वाले बच्चे, एक-एक सप्ताह भूखे रहने वाले बच्चे और बड़े होकर नक्सली बन जाने वाले एक इंसान ने लिखा था। इस किताब को पढ़कर समझ में आया कि ऐसे बच्चों की एक अलग ही दुनिया होती है, उनकी पीड़ा, तकलीफ और इंसानी दर्द को भरे पेट वाले लोग कभी छू भी नहीं सकते हैं। वे एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसको हम रोज अपन