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जामिया मिलिया इस्लामिया में CAA विरोध प्रदर्शन का हाल-ए-बयां

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दिल्ली आने के बाद से ही जामिया जाने का मन था लेकिन किसी न किसी वजह से नहीं जा पाई. आखिर में जाना हो ही गया. वह भी तब जब पत्थरबाजी हो चुकी थी और आंसू गैस के गोले दागे जा चुके थे. प्रोटेस्ट का नया अपडेट यही था. सोचा, चलो समय आ गया है जामिया की तरफ जाने का. जब विश्वविद्यालय के दरवाजे पर पहुंची तो दर्जनों छात्र उसकी दीवारों पर चढ़े हुए थे, कुछ छात्र जोर-जोर से चिल्ला भी रहे थे कि प्रोक्टर ने जब दरवाजा बंद कर दिया है तो हम तोड़कर भी दिखा देते हैं.  ऐसी गहमा-गहमी के बीच ही किसी चैनल का कैमरा दिखा और छात्र चिल्ला पड़े कि विश्वविद्यालय के भीतर कोई कैमरा नहीं आने दिया जाएगा और हो-हल्ला शुरू हो गया. दरवाजे से थोड़ी ही दूर कैंटीन के पास भी छात्रों का एक समूह नारेबाजी कर रहा था. इस नारेबाजी के बीच-बीच में भाषण भी हो रहा था और बताया जा रहा था कि जामिया की तहजीब क्या है और कैसे तहजीब के अंदर ही नारे लगाने हैं. फिर बात होने लगी पार्टिशन की. भारत और पाकिस्तान की. किसने कहां रहना चुना और किसने किसको कहां-कहां धोखा दिया. भीड़ में ही कोई किसी को एनआरसी और कैब को साथ मिलाकर समझाने की

कम उम्र में लड़कियों की शादी के विरोध से लेकर उन्हें स्कूलों से जोड़ने वाली राजस्थान की बहादुर लड़कियों की कहानी

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भैया , यह रोशन का घर किधर पडे़गा ?   कौन रोशन ?   वह लड़की जो लड़कियों को पढ़ाती है और जिसकी शादी हो रही है ?   इधर तो नहीं है , रामसर बड़ा गांव है , आप गलत मोहल्ले में आ गई हैं   रोशन का घर खोजने में काफी मेहनत करनी पड़ी . लेकिन मिलने पर लगा कि अच्छा हुआ कि मेहनत कर लिया . सिर पर पीला दुपट्टा रखे रोशन एक लड़की से बात कर रहीं थी . सामने वाली लड़की   के हाथों में एक मोटी फाइल पकड़ी हुई थी . रोशन के आस - पास शादी से जुड़े सामान और चमकीले कपड़े रखे थे और घर में मिठाइयां बन रही थी . बैठने को कहते हुए रोशन ने घर खोजने में हुई दिक्कत के लिए माफी मांगी और शरबत का गलास पकड़ा दिया .   मैं यहां रोशन से लड़कियों की पढ़ाई के सिलसिले में बात करने आई थी . रोशन का घर अजमेर के श्रीनगर ब्लॉक के रामसर में पड़ता है . यहां मुस्लिम आबादी अधिक है। यहां पहुंचने के लिए नसीराबाद से मुझे ऑटो लेना था लेकिन रोशन के साथ ही काम करने वाली एक ल

जिस कश्मीरियत की बात की जाती है, वह यही है!

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इतनी रेलें चलती हैं   भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कश्मीर के भीतर कई ट्रेनें नहीं चलती ,  तकनीकी रूप से कहें तो एक ही मार्ग पर ट्रेन चलती है और वह भी बंद बुलाने के बाद ठप्प ही रहती है। तो यहां आलोक धन्वा की कविता का ख्याल ही आ सकता है ट्रेन नहीं। पहले ही दिन रात में यह साफ हो गया था कि हम कल अपनी गाड़ी के अलावा किसी दूसरी गाड़ी से बारामूला नहीं जा सकते हैं क्योंकि चुनाव की वजह से कश्मीर बंद है। यह जानकर भी मैं निराश नहीं हुई थी ,  मुझे पता चल चुका था कि घूमने की सूची मैंने दिल्ली के मेट्रो के हिसाब से तैयार की है और यह कश्मीर है ,  जहां बंद कभी पीछा नहीं छोड़ता। और हमारे अजनबी दोस्त आज कहीं अपने फोटोग्राफी की वजह से बाहर जा रहे थे ,  वह भी हमारे साथ नहीं रहनेवाले थे। यानी आज सिर्फ हम दो लड़कियों को कश्मीर देखना था। लेकिन फिर ऐसा हुआ कि कोई अब्दुल्ला साहब का फोन आया जो हमें आज श्रीनगर शहर का भ्रमण कराने के लिए तैयार हो गए थे। अब हमें लोकल गाड़ियों से घूमना था। हम रास्ता पूछते – पूछते सही जगह आ गए जहां से हमें डल झील के लिए शेयरिंग कैब मिलने वाली थी। कश्मी