एक अकेली लड़की मनाली में
हम सब टुकड़ों - टुकड़ों में पूरी जिंदगी जीना चाहते हैं। हर दिन दिमागी जोड़ - तोड़ में लगे रहते हैं। एक साथ ही भागना और ठहरना दोनों चाहते हैं। और कोई पूछे तो ये जवानी है दिवानी का डायलॉग फट से सुना देते हैं , मैं उठना चाहता हूं , दौड़ना चाहता हूं , गिरना भी चाहता हूं .... बस रुकना नहीं चाहता । लेकिन इस न रूकने के चक्कर में न जाने कितना कुछ छूट जाता है , जिसके बारे में सोचने का मन तो करता है लेकिन खुद को फुर्सत का हवाला देकर तसल्ली कर जाते हैं। हम वीकेंड वाली पीढ़ी के लोग हैं। इस वीकेंड से प्यारी हमारे लिए धरती पर कुछ भी नहीं है और मैं खुद ऐसे ही लाखों लोगों में से एक हूं। हुआ यूं कि मैं दोस्तों के साथ कुछेक जगह घूमने पहले जा चुकी थी। साल 2017 की एक जनवरी को लाखों लोगों की तरह मैंने भी खुद से वादा किया था कि इस साल अकेले भी दो - तीन दिन के लिए कहीं घूमने जाना है। साल पूरा खत्म हो गया और खुद से किया एक वादा भ